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भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि

                    भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था । गृहप्रवेश से पू...

                    भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि

भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था । गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य व प्रकाण्ड विद्वान रावण को आमंत्रित किया था । दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए । ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं । ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।

भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है।जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है!आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं । वे देवों के भी देव होने के कारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं । वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं । देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक व निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं । वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर' भी हैं । तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं । उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-

असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ।

लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम न याति॥

अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है ।

भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता है और भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।

भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-

॥ ऊं नमः शिवाय ॥

यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं। अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है । विविध कामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।


बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-

॥ ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊं स्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊं भूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं ॥

भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो, परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं(अपना नाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅूं, भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें''। इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।

शिवलिंग की महिमा

भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है, इसके बारे में कहा गया है कि,

मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो,

बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।

शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं । शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

शिवलिंग पर अभिषेक या धारा

भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समय सारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक'। अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथा शिवपूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ से शिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली आ रही है । इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।
शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है । शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक ÷धारा' कहलाता है । जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है ।

पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन च कारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेक करना चाहिये ।

हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है । शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह हैः-

1 । ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः ।

२ । ऊं नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय, च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।

इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जल चढाना सहस्रधारा कहलाता है । जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है । इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी कर सकते हैं। पंचाक्षरी मंत्र का तात्पर्य है ÷ ऊं नमः शिवाय ' मंत्र ।

विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है । तंत्र में सकाम अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथ पूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है । इनमें से कुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-

सहस्रधाराः-

जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है ।
घी की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है ।
दूध की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए ।
दूध में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है ।
गंगाजल की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है ।
सरसों के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है ।
सुगंधित द्रव्यों यथा इत्र, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है ।

इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं, जिनमें से कुछ के विषय में निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-

सहस्राभिषेक

एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है ।
एक हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है ।
एक हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढती है ।
एक हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है ।
एक हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति व विष्णुकृपा प्राप्त होती है ।
एक हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है ।
एक हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है ।


मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009
त्रिकाल-दर्शक गौरी-शिव मन्त्र

विनियोगः-

अनयोः शक्ति-शिव-मन्त्रयोः श्री दक्षिणामूर्ति ऋषिः, गायत्र्यनुष्टुभौ छन्दसी, गौरी परमेश्वरी सर्वज्ञः शिवश्च देवते, मम त्रिकाल-दर्शक-ज्योतिश्शास्त्र-ज्ञान-प्राप्तये जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः-

श्री दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि, गायत्र्यनुष्टुभौ छन्दोभ्यां नमः मुखे, गौरी परमेश्वरी सर्वज्ञः शिवश्च देवताभ्यां नमः हृदि, मम त्रिकाल-दर्शक-ज्योतिश्शास्त्र-ज्ञान-प्राप्तये जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।

कर-न्यास (अंग-न्यास)ः-

ऐं अंगुष्ठभ्यां नमः (हृदयाय नमः), ऐं तर्जनीभ्यां नमः (शिरसे स्वाहा), ऐं मध्यमाभ्यां नमः (शिखायै वषट्), ऐं अनामिकाभ्यां हुं (कवचाय हुं), ऐं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् (नेत्र त्रयाय वौषट्), ऐं करतल-करपृष्ठाभ्यां फट् (अस्त्राय फट्)।

ध्यानः-
उद्यानस्यैक-वृक्षाधः, परे हैमवते द्विज-
क्रीडन्तीं भूषितां गौरीं, शुक्ल-वस्त्रां शुचि-स्मिताम्।
देव-दारु-वने तत्र, ध्यान-स्तिमित-लोचनम्।।
चतुर्भुजं त्रि-नेत्रं च, जटिलं चन्द्र-शेखरम्।
शुक्ल-वर्णं महा-देवं, ध्याये परममीश्वरम्।।

मानस पूजनः-

लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं समर्पयामि नमः। हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं समर्पयामि नमः। यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं घ्रापयामि नमः। रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं दर्शयामि नमः। वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि नमः। शं शक्ति-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि नमः।

शक्ति-शिवात्मक मन्त्रः-

“ॐ ऐं गौरि, वद वद गिरि परमैश्वर्य-सिद्ध्यर्थं ऐं। सर्वज्ञ-नाथ, पार्वती-पते, सर्व-लोक-गुरो, शिव, शरणं त्वां प्रपन्नोऽस्मि। पालय, ज्ञानं प्रदापय।”

इस ‘शक्ति-शिवात्मक मन्त्र’ के पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है। केवल जप से ही अभीष्ट सिद्धि होती है। अतः यथाशक्ति प्रतिदिन जप कर जप फल देवता को समर्पित कर देना चाहिए।

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