नीना दावुलूरी ने दुनिया भर में रह रहे भारतीयों को गर्व करने का एक और मौका दिया है। लेकिन इसके साथ ही वह एक नई तरह की बहस का हिस्सा भी बन गई ...
नीना दावुलूरी ने दुनिया भर में रह रहे भारतीयों को गर्व करने का एक और मौका दिया है। लेकिन इसके साथ ही वह एक नई तरह की बहस का हिस्सा भी बन गई हैं। अमेरिका का एक तबका उनकी सफलता से झुंझलाया हुआ है। वह सोशल मीडिया पर जहर उगलने की औपचारिकता पूरी कर चुका है। इस सबके बीच नीना की सफलता से सबसे अधिक खुश महिलाओं का वह वर्ग है जो अपनी शारीरिक बनावट को लेकर हीन भावना का शिकार रहता है। दरअसल, नीना की कहानी कई मायने में सिंड्रैला से भी हसीन है।
इस कहानी में नीना ने अपनी इच्छाशक्ति के जादू से खुद को खूबसूरती के ऊंचे मुकाम तक पहुंचाया है। नीना की खुशी का अंदाजा वह लोग नहीं लगा सकते जिन्होंने कभी मोटापे से छरहरेपन का सफर तय नहीं किया है। अपने शरीर पर 30 किलो का अतिरिक्त वजन से होने वाली शारीरिक परेशानी के अलावा मोटू होने का जुमला सुनना भी किसी सजा से कम नहीं है। बात चाहे किसी समाज की हो, मोटे इंसान को देखने का नजरिया कमोबेश एक जैसा ही है। मोटापे से जंग जितनी शारीरिक है उतनी ही मानसिक भी है। हर बार मोटापे से निजात पाने के तरीके खोजना और फेल हो जाना। यह इस सफर का सबसे स्वाभाविक पड़ाव है।
नीना ने जब वजन कम करने की ठानी होगी तो हर लड़की की तरह यही सोचा होगा कि कैसे भी, बस मोटापे निजात पा लूं। कभी जिस लड़की को आसपास का समाज नोटिस भी न करता हो वह खूबसूरती के चरम पायदान पर पहुंच जाए और मिस अमेरिका बन जाएगी, यह एक लोककथा की तरह है। नीना की कहानी हर उस लड़की की कहानी है जो मोटापे से कभी न खत्म होने वाली जंग लड़ रही हैं। उनमें से कोई भी बन सकती है ब्यूटी क्वीन।
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