महादेव शिवलिंग क्यों ? महादेव शिवलिंग क्यों ? बीज बोने के लिए गर्मी का ताप और जल की नमी की...
महादेव शिवलिंग क्यों ?
महादेव शिवलिंग क्यों ?
बीज बोने के लिए गर्मी
का ताप और जल की नमी की एक साथ जरूरत होती है। अत: आदिदेव शिव पर जल
चढ़ाना ही नहीं लगातार अभिषेक करना अधिक महवपूर्ण है।
शिवरात्रि या शिवचौदस नाम क्यों ?
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा यानी आधी रात के वक्त भगवान शिव लिंग
रूप में प्रकट हुए थे, ऐसा ईशान संहिता में बताया गया है। इसीलिए सामान्य
जनों के द्वारा पूजनीय रूप में भगवान् शिव के प्राकट्य समय यानी आधी रात
में जब चौदस हो उसी दिन यह व्रत किया जाता है।
शिवलिंग क्या है ?
वातावरण
सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड का अक्स ही लिंग है। इसीलिए
इसका आदि और अन्त भी साधारण जनों की क्या बिसात, देवताओं के लिए भी
अज्ञात, अनन्त या नेति-नेति है। सौरमण्डल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही
शिव तन पर लिपटे सांप हैं। मुण्डकोपनिषद के कथनानुसार सूरज, चांद और अग्नि
ही आपके तीन नेत्र हैं। बादलों के झुरमुट जटाएं, आकाश जल ही सिर पर स्थित
गंगा और सारा ब्रह्माण्ड ही आपका शरीर है। शिव कभी गर्मी के आसमान
(शून्य) की तरह कर्पूर गौर या चांदी की तरह दमकते, कभी सर्दी के आसमान की
तरह नीले और कभी बरसाती आसमान की तरह मटमैले होने से राख भभूत लिपटे तन
वाले हैं। यानी शिव सीधे-सीधे ब्रह्माण्ड या अनन्त प्रकृति की ही साक्षात्
मूर्ति हैं। मानवीकरण में वायु प्राण, दस दिशाएं पंचमुख महादेव के दस
कान, हृदय सारा विश्व, सूर्य नाभि या केन्द्र और अमृत यानी जल युक्त
कमण्डलु हाथ में रहता है।
ये महादेव क्यों हैं ?
बड़ा या महान बनने के
लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशक्ति की दरकार होती है। विष को
अपने भीतर ही सहेजकर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से और विरोधों,
विषमताओं को भी सन्तुलित रखते हुए एक परिवार, एक यूनिट बनाए रखने से आप
महादेव हैं। आपके समीप पार्वती का शेर, आपका बैल, शरीर के सांप, कुमार
कार्तिकेय का मोर, गणेश का मूषक, विष की अग्नि और गंगा का जल, कभी पिनाकी
धनुर्धर वीर तो कभी नरमुण्डधर कपाली, कहीं अर्धनारीश्वर तो कहीं महाकाली के
पैरों में लुण्ठित, कभी मृड यानि सर्वधनी तो कभी दिगम्बर, निर्माणदेव भव
और संहारदेव रुद्र, कभी भूतनाथ कभी विश्वनाथ आदि सब विरोधी बातों का जिनके
प्रताप से एक जगह पावन संगम होता हो, वे ही तो देवों के देव महादेव हो
सकते हैं।
बेलपत्र, भांग, धतूरा क्यों चढ़ता है ?
शब्द रूप में ओंकार होने से ‘अ’ यानी सत्वगुण या निर्माण रचना या सृष्टि,
‘उ’ रूप में स्थित रजोगुण या पालन करना और ‘म’ यानी तमोगुण रूप में संहार,
समापन या उपसंहार करके फिर नूतन निर्माण का सूत्रपात करने जैसे जेनरेशन,
ऑपरेशन और डिस्ट्रक्शन (गॉड), या सृष्टि स्थिति संहार की एक साथ समन्वित
शक्ति सम्पन्नता के प्रतीक रूप में तीन दलों वाले, त्रिगुणाकार बेलपत्र और
विष के प्रतिनिधि रूप में भांग धतूरा आदि अर्पण किया जाता है।
लिंग क्या है ?
इस शब्द का अर्थ चिह्न,
निशानी या प्रतीक है। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष
का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश
स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो
उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।
शिवलिंग मन्दिरों में बाहर क्यों ?
जनसाधारण के देवता होने
से, सबके लिए सदा गम्य या पंहुच में रहे, ऐसा मानकर ही इनका यह स्थान तय
किया गया है। ये अकेले देव हैं जो गर्भगृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन
देते हैं। इन्हें तो बच्चों-बूढ़े-जवान जो भी जाए छूकर, गले मिलकर या फिर
पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना हल्के हो सकते हैं। भोग लगाने अर्पण करने
के लिए कुछ न हो तो पत्ता-फूल, या अंजलि भर जल चढ़ाकर भी खुश किया जा
सकता है।
जल क्यों चढ़ता है ?
रचना या निर्माण का पहला
पग बोना, सींचना या उड़ेलना हैं। बीज बोने के लिए गर्मी का ताप और जल की
नमी की एक साथ जरूरत होती है। अत: आदिदेव शिव पर जीवन की आदिमूर्ति या
पहली रचना, जल चढ़ाना ही नहीं लगातार अभिषेक करना अधिक महवपूर्ण होता जाता
है। सृष्टि स्थिति संहार लगातार, बार-बार होते ही रहना प्रकृति का नियम
है। अभिषेक का बहता जल चलती, जीती-जागती दुनिया का प्रतीक है।
शनि को शिवपुत्र क्यों कहते हैं ?
संस्कृत
शब्द शनि का अर्थ जीवन या जल और अशनि का अर्थ आसमानी बिजली या आग है। शनि
की पूजा के वैदिक मन्त्र में वास्तव में गैस, द्रव और ठोस रूप में जल की
तीनों अवस्थाओं की अनुकूलता की ही प्रार्थना है। खुद मूल रूप में जल होने
से शनि का मानवीकरण पुराणों में शिवपुत्र या शिवदास के रूप में किया गया
है। इसीलिए कहा जाता है कि शिव और शनि दोनों ही खुश हों तो निहाल करें और
नाराज हों तो बेहाल करते हैं।
लेकिन शनि तो सूर्यपुत्र है
सूर्य
जीवन का आधार, सृष्टि स्थिति का मूल, वर्षा का कारण होने से पुराणों में
खुद शिव या विष्णु का रूप माना गया है। निर्देश है कि शिव या विष्णु की
पूजा सूर्यपूजा के बिना अधूरी है। खुद सूर्य जलकारक दायक पोषक होने और शनि
स्वयं जलरूप रहने से इस बात में कोई विरोध नहीं हैं।
रात की चार पूजाओं में विशेष
रात्रि में चारों पहरों
की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी
और चौथे में शहद को मुख्यतया शामिल करना चाहिए।
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