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यूरोप में खगोल शास्त्र

यूरोप में ख गोल शास्त्र यूरोप के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तथा उनके द्वारा किया गया कार्य इस प्रकार है: टौलमी (९०-१६८) नाम का ग्रीक दर्शनशास्त्...

यूरोप में खगोल शास्त्र

यूरोप के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तथा उनके द्वारा किया गया कार्य इस प्रकार है:
  • टौलमी (९०-१६८) नाम का ग्रीक दर्शनशास्त्री दूसरी शताब्दी में हुआ था। इसने पृथ्वी को ब्रम्हाण्ड का केन्द्र माना और सारे पिण्डों को उसके चारों तरफ चक्कर लगाते हुये बताया। इस सिद्धान्त के अनुसार सूरज एवं तारों की गति तो समझी जा सकती थी पर ग्रहों की नहीं।
  • कोपरनिकस (१४७३-१५४३) एक पोलिश खगोलशास्त्री था, उसका जन्म १५वीं शताब्दी में हुआ। यूरोप में सबसे पहले उसने कहना शुरू किया कि सूरज सौरमंडल का केन्द्र है और ग्रह उसके चारों तरफ चक्कर लगाते हैं।
  • केपलर (१५७१-१६३०) एक जर्मन खगोलशास्त्री था, उसका जन्म १६वीं शताब्दी में हुआ था। वह गैलिलियो के समय का ही था। उसने बताया कि ग्रह सूरज की परिक्रमा गोलाकार कक्षा में नहीं कर रहें हैं, उसके मुताबिक यह कक्षा अंड़ाकार (Elliptical) है। यह बात सही है।
  • गैलिलियो (१५६४-१६४२) एक इटैलियन खगोलशास्त्री था उसे टेलिस्कोप का आविष्कारक कहा जाता है पर शायद उसने बेहतर टेलिस्कोप बनाये और सबसे पहले उनका खगोलशास्त्र में प्रयोग किया।
टौलमी के सिद्धान्त के अनुसार शुक्र ग्रह पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाता है और वह पृथ्वी और सूरज के बीच रहता है इसलिये वह हमेशा बालचन्द्र (Crescent) के रूप में दिखाई देगा। कोपरनिकस के मुताबिक शुक्र सारे ग्रहों की तरह सूरज के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है इसलिये चन्द्रमा की तरह उसकी सारी कलायें (phases) होनी चाहिये। गैलिलियो ने टेलिस्कोप के द्वारा यह पता किया कि शुक्र ग्रह की भी चन्द्रमा की तरह सारी कलायें होती हैं इससे यह सिद्ध हुआ कि ग्रह – कम से कम शुक्र तो – सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं। गैलिलियो ने सबसे पहले ग्रहों को सूरज का चक्कर लगाने का प्रयोगात्मक सबूत दिया। पर उसे इसका क्या फल मिला। चर्च ने यह कहना शुरू कर दिया कि यह बात ईसाई धर्म के विरूद्ध है और गैलिलियो को घर में नजरबन्द कर दिया गया।
भौतिक शास्त्र में हर चीज देखी नहीं जा सकती है और किसी बात को सत्य केवल इसलिये कहा जाता है कि उसको सिद्धान्तों के द्वारा समझाया जा सकता है। यदि पृथ्वी को सौरमंडल का केन्द्र मान लिया जाय तो किसी भी तरह से इन ग्रहों की गति को नहीं समझा जा सकता है पर यदि सूरज को सौरमंडल का केन्द्र मान लें तो इन ग्रहों और तारों दोनों की गति को ठीक प्रकार से समझा जा सकता है। इसलिए यह बात सत्य मान ली गयी कि सूरज ही हमारे सौरमंडल के केन्द्र में है जिसके चारों तरु पृथ्वी एवं ग्रह घूम रहे हैं।

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