क्यो शिव को श्मशानवासी कहा जाता है भस्म-समर्पण क्यो शिव को श्मशानवासी कहा जाता है। वह देह पर भस्म लगाते हैं। भस्म किसी ...
क्यो शिव को श्मशानवासी कहा जाता है
भस्म-समर्पण
क्यो शिव
को श्मशानवासी कहा जाता है। वह देह पर भस्म लगाते हैं। भस्म किसी वस्तु के
जलने या नष्ट होने के बाद बनती है। शिव बुराई का वरण-हरण करते हैं। वह
बताते हैं, जो तुमने नष्ट कर दिया, मुझे समर्पित कर दो। जीवन की राख, जो
मनुष्य के काम की नहीं, वह मेरा सिंगार है। शिवपुराण के अनुसार, जब शिव
संहार करके सृष्टि समाप्त कर देते हैं, तो फिर उसकी भस्म को शरीर पर लपेट
कर अपने पसीने और राख से दुबारा सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं।
नाग-अंधकार
का अंत गले में लटका नाग विष से उनकी नÊादीकी बताता है। जिसके गले में नाग
हो, उसका विष भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। नाग का अर्थ अंधेरा भी है। शिव
हमारे जीवन का अंधकार स्वयं धारण कर लेते हैं और हमें ज्ञान का प्रकाश देते
हैं।
त्रिशूल-तीन नोक, तीन गुण
यह
शिव का हथियार है। इसमें तीन नोक क्यों हैं? सत्व, रज और तम- ये तीनों गुण
ही जीवन की बुराइयों को बढ़ाते हैं। इनका सामंजस्य न हो, तो बुराई बढ़ती
है। त्रिशूल के तीन नोक तीनों गुणों का ख़ात्मा करने के लिए हैं।
डमरू-जीवन का संचार
शिव
कला के भी देव हैं। उन्हें संगीत पसंद है। वह स्वयं मौन रहते हैं, पर
प्रसन्न होने पर डमरू बजाते हैं। नाद या गूंज जीवन का संचार होता है। शिव
डमरू बजाकर जीवन का संचार करते हैं। संस्कृत या व्याकरण स्पष्ट करने वाले
पाणिनि के अनुसार, जब शिव ने पहली बार डमरू बजाया, तो उसमें से अ, इ, उ
जैसे 14 सूत्र निकले। सनकादि ऋषियों ने इन सूत्रों को एकत्रित कर एक धागे
में पिरोया और संस्कृत भाषा का जन्म हुआ।
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