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ग्रहण का महत्व:

                                       ग्रहण का महत्व: ग्रहण का महत्व: हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों मे ग्रहण की स्थिति विशेष सिद्धिदायक...

                                       ग्रहण का महत्व:





ग्रहण का महत्व: हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों मे ग्रहण की स्थिति विशेष सिद्धिदायक कही गई है। इस समय ग्रहण को न देखकर अपने-अपने ईष्ट या देवता अथवा ग्रहों के मंत्र जाप करने चाहिए। जिन लोगों का जन्म उस राशि और नक्षत्र में हुआ हो जिनमें कि ग्रहण लग रहा है उन लोगों को इसके विशेष फल मिलते हैं। -


 चन्द्र के सूर्य और पृथ्वी के बीच मे आने की स्थिति के कारण पृथ्वी के कुछ भाग पर सूर्य का प्रकाश बाधित हो जाता है। उस अंधेरे स्थान पर सूर्य ग्रहण लग जाता है।
सूर्य ग्रहण की स्थिति अमावस्या को ही हो सकती है। जब चंद्रमा, सूर्य के ठीक निकटतम होते हैं। इस समय चंद्रमा राहु-केतु पात बिंदुओं पर होते हैं। सूर्य ग्रहण तभी होता है जब-जब चंद्रमा क्रांति तल (पृथ्वी) के निकटतम हों। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी से छोटे हैं और यह पृथ्वी पर बहुत थोडे़ से भाग पर सूर्य की किरणों को आने से रोक पाते हैं इसलिए पूर्ण सूर्य ग्रहण आठ मिनट से अधिक समय का नहीं होता।
  सूर्य ग्रहण तीन प्रकार का होता है-खग्रास, खंडग्रास, वलयाकार : पहले सूर्य का पूर्वी भाग चंद्रमा से आच्छादित होता है अत: सूर्य ग्रहण पूर्व में आरंभ होकर पश्चिम में समाप्त होता है। सूर्य ग्रहण चंद्रमा की परछाई से होता है, यह परछाई अमावस्या को ही प़ड सकती है। ऎसी स्थिति एक वर्ष में 12 बार होती है अर्थात् 12 सूर्य ग्रहण हो सकते हैं। जब-जब चंद्रमा सूर्य को आच्छादित करते हैं, उतनी दूर तक पृथ्वी के किसी हिस्से में चंद्रमा की परछाई अवश्य प़डती है, इसी का नाम सूर्य ग्रहण होता है। पृथ्वी के उस भाग में रहने वालों के लिए वही सूर्य ग्रहण होता है। सूर्य जगत व्याप्त है अत: सूर्य ग्रहण संपूर्ण पृथ्वी मंडल के लिए नहीं होता।

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